यह पुस्तक निश्चित रूप से विश्वास दिलाती है कि हम सभी आध्यात्मिक जीव हैं, जो मानवीय अनुभव पा रहे हैं… और हम सभी एक हैं!
इस प्रेरणादायक संस्मरण में, अनीता मूरजानी दर्शाती हैं कि किस प्रकार लगातर चार साल तक कैंसर से लड़ने बाद, एक दिन उनके शरीर ने काम करना बंद कर दिया – उनके पूरे शरीर में कैंसर की घातक कोशिकाओं ने हमला कर दिया था। जब उनके अंगों ने काम करना बंद किया, तो वे मृत्यु को निकट से देखने के असाधारण अनुभव में प्रवेश कर गईं, जहाँ उन्हें अपनी सच्ची आंतरिक क्षमता का परिचय मिला… और उन्होंने अपने रोग के मूल कारण को जाना। होश आने के बाद, अनीता ने पाया कि उनकी शारीरिक दशा में इतनी तेज़ी से सुधार हो रहा था कि वे कुछ ही सप्ताह में अस्पताल से रोग-मुक्त होकर लौट आईं। उनके शरीर में कैंसर का एक भी कतरा नहीं बचा था!
इस पुस्तक में, अनीता हाँगकाँग में बीते बचपन, अपने कैरियर व सच्चे प्यार से जुड़ी चुनौती और इसके साथ ही वह कहानी भी बाँटती हैं, जिसमें वे अंतत: अस्पताल के बिस्तर तक जा पहुँचीं, जहाँ उन्होंने चिकित्सा विज्ञान को निरर्थक सिद्ध कर दिया।
चीनी व ब्रिटिश समाज में, एक पारंपरिक हिंदू परिवार के अंग के रूप में, अनीता को बचपन से ही सांस्कृतिक व धार्मिक रीति-रिवाज़ों की ओर धकेला जाता रहा। अपना रास्ता खुद बनाने के, सालों के संघर्ष के दौरान, वे सबकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास करती रहीं। फिर अपने उस दिव्य प्रकटीकरण के बाद उन्होंने पाया कि उनके पास स्वयं को आरोग्य प्रदान करने की क्षमता विद्यमान थी… और ब्रह्माण्ड में ऐसे करिश्मे भी होते हैं, जिनकी उन्होंने कभी कल्पना तक नहीं की थी।
‘डाइंग टू बी मी’ में अनीता मुक्त मन से वे सभी अनुभव बाँटती हैं जो उन्होंने रोग, आरोग्य, भय, प्रेम का अस्तित्व बनने तथा हर मनुष्य के सच्चे स्वरूप के बारे में सीखा व जाना।
मेरे पास वापिस आने या न आने का चुनाव था…।
जब मुझे यह एहसास हुआ कि ‘स्वर्ग’ कोई स्थान नहीं,
एक ‘अवस्था’ है, तो मैंने वापिस आने का चुनाव किया।
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